आंतरिक बल (भाग – 1)-मन एक रेडीयो स्टेशन है

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137 सालों से ईश्वरीय ने ही गॉंव में ईश्वरीय कनेडा, टोरन्टो के ब्रह्माकुमार ब्राइन भाई, जो 37 सालों से ध्याान और राजयोग का अभ्यास कर रहे है और अपने ही गॉंव में, विश्व विद्यालय की एक शाखा खोलकर कई आत्माओं को बनाने के निमित्त बने हैं, वे जगदीश भाई के साथ के भावपूर्ण अनुभव प्रकार सुना रहे हैं – सन 1980 में जब मैं यूनिवर्सिटी में दूसरे साल की इंजीनियरिंग पढ़ रहा था, तब क्रिसमस मनाने घर गया था। उस समय मेरी बहन ने मुझे ज्ञान का सात दिन का कोर्स दिया। वह चाहती थी कि मैं ब्रह्माकुमार बनें। जब वह बाबा का परिचय दे रही थी, योग की दृष्टि दे रही थी तब मुझे कानों में बाबा की ध्वनि सुनायी पड़ी। इस अनुभव से मुझे शिव बाबा में निश्चय होता गया। लौकिक में मैं एक जियोलॉजिकल इंजीनियर हूँ। । उसके बाद मैं दादी जानकी से मिला, दादी ने मुझे लन्दन में सात महीनों तक रखा। उसके बाद मुझे मधुबन भेजा गया। मधुबन में मैं लगभग चार महीने रहा। मधुबन में बेहद के परिवार से मिला। उन दिनों भ्राता बृजमोहनजी से मेरा मिलना हुआ। दादी प्रकाशमणि जी ने मुझे दिल्ली भेजा ’प्युरिटी’ पत्रिका में सेवा करने के लिए। वहॉं भ्राता जगदीश से मिलना हुआ। ’दि वर्ल्ड रिन्युअल’ अंग्रेज़ी मैगज़ीन के कुछ लेखों का करेक्शन करने की सेवा भी मुझे मिली। उस मैगज़ीन में जगदीश भाई के ही लेख ज़्यादा होते थे। उनका करेक्शन भी मैं करता था। जगदीश बड़े विनम्र थे। जब मैं उनके लेखों का करेक्शन करता था, वे बड़ी नम्रता से स्वीकार करते थे।

उनको देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरे पिता हैं। उनके मन में सबके प्रति जो प्यार था, यज्ञसेवा के प्रति जो अथकपन था और दैवी परिवार की एकता के प्रति उनका जो परिश्रम था- वो बहूत अदभुत था। मैंने देखा, कुमारों में उमंग- उत्साह भरने में, बहनों की कोई भी समस्या हो उसका निवारण करने में, उनका समर्थन करने में, अलौकिक जीवन में उनके स्थिर होकर चलने में उन्होंने बहुत ही योगदान दिया। मेरे ईश्वरीय जीवन की शुरुआत में उन्होंने मुझे बहुत-सी बातों की जानकारी दी। उन्होंने मुझे बताया कि बाबा के प्रति, यज्ञ के प्रति हमारी कैसी भावना होनी चाहिए और ईश्वरीय सेवा में कैसे बहनों को आगे रखना है। उन्होंने बताया कि हम जितना बहनों को आगे रखेंगे और सम्मान करेंगे उतना सेवा भी आगे बढ़ेगी और हमारा पुरुषार्थ भी निर्विघ्न चलता रहेगा। वे अपने अनुभव सुनाया करते थे कि बाबा से उनको कैसे मदद मिलती थी, बाबा कैसे कई विकट परिस्थितियों में बचाते हैं इत्यादि। उनके अनुभवों की बातें मेरे दिल को छू लेती थीं। उनकी क्लासेस ज्ञान की गहराई में ले जाती थीं। जो भी उनकी क्लासेस सुनता था, महसूस करता था कि वे बड़े ज्ञानी हैं और अनुभवी हैं। वे किसी भी विषय पर बोल सकते थे, वे बड़े मेधावी थे, बड़े पढ़े-लिखे महान् चिन्तक थे। ऐसे बुद्धिजीवी को अन्यत्र मैंने देखा नहीं और मिला नहीं।

(प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय)