आंतरिक बल (भाग – 1)-मन एक रेडीयो स्टेशन है

0
53

प्रत्येक मनुष्य के पास एक ऐसी शक्ति है जिससे कि वह अपने आसपास होने वाली चीजों का अंदाजा लगा सकता है। लोग इस शक्ति का इस्तेमाल करते रहते हैं परंतु इसे समझ नहीं पाते। किसी स्नेही व्यक्ति को जब कभी हम याद कर रहे होते हैं तो उसी समय उसका फोन आ जाता है। बच्चे को कहीं कुछ होता है तो माता तड़फने लगती है। कई बार आखिरी समय पर यात्रा का प्रोग्राम रद्द कर देते हैं और दुर्घटना से बच जाते हैं। यह सब छठी इन्द्रिय के कारण होता है। इसे छठी चेतना भी कहते हैं। मनुष्य अपनी छठी चेतना से अपने आसपास या आगे घटित होने वाली चीजों का पता लगा लेता है। लोगों से आने वाली खुशबू से उसके व्यक्तित्व का आंकलन कर लेते हैं। किसी व्यक्ति से पहली बार मिलने पर उसके बारे अंदाजा लगाते हैं। कि यह अच्छा व बुरा है। यह सब हम छठी इन्द्रिय के कारण उससे निकल रही खुशबू से लगाते हैं। कई अंधे लोग फोटो से सही से अंदाजा लगा सकते हैं। एक शोध में उदासी और खुशी के क्षणों की फोटो का एक अंधे व्यक्ति ने बिल्कुल सही आंकलन कर लिया। यह कला आज भी दिमाग में बनी है। कितना भी ज्यादा अंधेरा हो या रात का समय हो, अपना हाथ सामने आते ही आदमी उसे पहचान लेता है। घुप अंधेरे में रोटी का टुकड़ा उठाने के बाद सीधा मुँह में जाता है। इधर-उधर नहीं गिरता और यह सब उसकी छठी इन्द्रिय का ही कमाल होता है।

कपाल के नीचे प्रत्येक मनुष्य के मुँह के अंदर तालू में एक छोटा सा छेद है। इस छेद को ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यही से एक नाड़ी जिसे सुषमना कहते हैं, रीढ़ की हड्डी से होती हुए आखिरी शक्ति केन्द्र मूल आधार तक अर्थात् रीढ़ के आखिरी मनके तक जाती है। यहीं से इडा और पिंगला नाम की दो नाड़ियां भी रीढ़ की हड्डी से होती हुई आखिरी मनके तक जाती हैं। बायें तरफ के नाक से जो सांस लेते हैं उसे इडा नाड़ी कहते हैं। दायें तरफ के नाक से जो सांस लेते हैं उसे पिंगला नाड़ी कहते हैं। सुषमना नाड़ी इन दोनों के बीच में होती है। एक नाक से बदलकर जब दूसरे नाक से सांस लेने लगते हैं तो थोड़ी देर दोनों नाक से सांस चलने लगता है। जब दोनों नाक से सांस ले रहे होते हैं तो उस समय सुषमना नाड़ी क्रियाशील रहती है। यह सुषमना नाड़ी सातों चक्रों और छठी इन्द्रिय का केन्द्र मानी जाती है। यहीं से सुषमना नाही सहस्त्रार चक्र से भी जुड़ी है। सहस्त्रार चक्र एक विशाल चक्र है जो ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है। सुषमना नाड़ी के जागृत होने से छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है। भक्ति मार्ग में प्राणायाम के अभ्यास से छठी इन्द्रिय को जागृत करते हैं, परंतु हम जितना-जितना ध्यान भृकुटी में ज्योति पर लगाते हैं उतना ही छठी इन्द्रिय अपने आप जागृत होती जाती है। दोनों नाकों के बीचों-बीच नाक के एक इंच आगे अगर बिंदू पर ध्यान लगाते हैं तब भी छठी इन्द्रिय जागृत होती रहती है। अगर मुख के अंदर तालू में जो छोटा सा छेद है वहॉं बिंदु प्रकाश को देखते रहे तब भी छी इन्द्रिय जल्दी जागृत हो जाती है। कोई भी ध्यान या साधना या अच्छी चीजों पर एकाग्रता करते हैं तो उसके प्रभाव से छठी इन्द्रिय अनजाने में जागृत होती रहती है। विश्व का प्रत्येक व्यक्ति कुछ-न-कुछ मात्रा में अंजाने में ही अपनी छठी इन्द्रिय को प्रयोग करता रहता है।

(प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय)