आंतरिक बल (भाग – 1)-मन एक रेडीयो स्टेशन है

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किसी प्रियजन की मृत्यु, घाटा और असफलता से भी अवसाद हो जाता है। पारिवारिक झगड़े, सम्बन्ध विच्छेद, प्यार न मिलने से भी उदासी आ जाती है। पढ़ाई का दवाब, काम का दवाब, आर्थिक दवाव, जिम्मेवारी का दवाब होने से भी निराशा आ जाती है। जब हम दूसरों पर आर्थिक रुप से निर्भर हो जाते हैं तो यह भी निराश होने का मुख्य कारण है। एक योगी जब बार-बार पॉंच विकारों से हार खाता है या जीवन में महत्व नहीं मिलता है तो वह अवसाद में चला जाता है। बुरे संस्कार व बुरी आदतों से बार-बार हार खाने के कारण भी निराश हो जाते हैं। इसके हल के लिए स्थूल कारणों का निवारण करें। बीमार हैं तो दवाई लें। बेरोजगार हैं तो रोजगार दिलाने में मदद / प्रोत्साहन दें। पढ़ाई की समस्या है तो सलाह लें, मेहनत करें। दूसरों से तुलना बंद करें। हर बात में टोका-टाकी न करें। आर्थिक परेशानी दूर करने के तरीके सुझाये। परिवार में कुछ देर इकट्ठे बैठकर बातें करें अपनापन दिखाये। बुजुर्गों के साथ जरूर बैठे। अवसाद का मूल कारण है मानसिक कमजोरी। जो भी कारण है उनसे सम्बन्धित ज्ञान हासिल करो। जब भी कोई बुरा विचार आये उसका उलटा अच्छा जो होना चाहिये था वह शब्द मन में दोहराते रहें/सोचें। जैसे कोई तिरस्कार करे तो सोचो मैं ऐसा लायक बनूंगा कि सभी प्रोत्साहन देंगे, कोई प्रताड़ना करे तो सोचो मैं अपने पर आश्रित लोगों के साथ ऐसा नहीं करूंगा उन्हें लाड़-प्यार से रखूंगा। अवसाद से बाहर निकलने के लिये कोई अव्यक्त-वाणी या अन्य कोई। पुस्तक पढ़े और तब तक पढ़े जब तक हल न मिल जाये। धन का पर्याप्त प्रबंध करें। कोई-न-कोई स्थूल काम करते रहो। सांस रोककर बाबा को याद करो। प्यारे बाबा से इस निष्काम सेवा के साथ, एक विरोधाभास जुड़ा है। सच्ची निष्काम सेवा वही है जिसे हम किसी इनाम या सम्मान की इच्छा किए बिना करें। दूसरों की सहायता करने की स्वाभाविक इच्छा के वशीभूत होकर यह सेवा स्वच्छंद की जाती है। इसमें इंसान किसी दूसरे की सहायता करते समय, अपने आराम और सुरक्षा के साथ-साथ अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को भी भूल जाता है। ऐसे भी इंसान होते हैं, जो दूसरों को बचाने के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर देते हैं। सच्चे निस्स्वार्थी लोग अपने प्रयत्नों के बदले में किसी चीज़ की आशा नहीं करते। निष्काम सेवा में निहित विरोधाभास यह है कि कोई पुरस्कार न चाहते। हुए भी, यह सेवा करने से सबसे ऊँचा पुरस्कार प्राप्त होता है और वह है, ईश्वर की प्रसन्नता। यह लाभ बहुत छोटा प्रतीत हो सकता है, परन्तु उन लोगों के लिए । जिन्हें अपने आध्यात्मिक विकास में दिलचस्पी है, यह जीवन में प्राप्त किया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार है। इसका फल इंसान तब भोगता है, जब वह अकेला एकांत में बैठता है और प्रकाश, प्रेम और शांति की गुप्त द्वार को आराम से खुलता हुआ पाता है। ये खजाने नि:स्वार्थी आत्माओं को ऐसे आंतरिक आनन्द और संतुष्टि से भर देते हैं, जो किसी भी संसारी कार्य से प्राप्त नहीं हो सकते। संत दर्शनसिंह जी फ़रमाया करते थे कि निष्काम सेवा का लाभ उतना ही अधिक है, जितना कि उतने समय भजन-सुमिरन करने का। अहिंसा, सच्चाई, दिल की पवित्रता और नम्रता का जीवन सफल भजन-सुमिरन के लिए ज़रूरी मन की स्थिरता प्रदान करते हैं। परन्तु निष्काम सेवा से प्रभु की वह दया मेहर मिलती है, जो आंतरिक द्वार खोलने में हमारी सहायता करती है।

(प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय)