आंतरिक बल (भाग – 1)-मन एक रेडीयो स्टेशन है

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भाई साहब बीमार पड़े तो यहीं मधुबन में रहने लगे। हम उनसे मिलने आते थे और वे खुद हम से पूछते थे कि कैसे हैं, ठीक हैं ? घरपरिवार में सब ठीक हैं ? इस प्रकार, सिर्फ क्लास में आने वालों के प्रति उनका स्नेह नहीं था, उनके घर-परिवार वालों के प्रति भी उनकी उतनी ही शुभ-भावना और शुभ-कामना होती थी। भाई साहब से मिलकर मैं दिल्ली वापस चली गयी। कुछ दिनों के बाद एक दिन मैं बाबा के कमरे में योग कर रही थी। बाबा को देखते-देखते ऐसा होने लगा कि भाई साहब और ब्रह्मा बाबा एक होते जा रहे हैं। यह अनुभव एक बार नहीं, अनेक बार हुआ। मैंने दीदी से कहा, दीदी, भाई साहब और ब्रह्मा बाबा एक होते जा रहे हैं। मैं बैठती थी शिव बाबा को याद करने लेकिन मुझे अनुभव होता था यह। मैं दीदी से बार-बार कहती थी कि मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है। मुझे लगा, भाई साहब का अन्तिम समय का पुरुषार्थ भी बहुत ऊँचे स्तर का था। उनका पुरुषार्थ गुप्त था, किसी को पता नहीं लगता था कि वे पुरुषार्थ कर रहे हैं।

जब उनके पार्थिव शरीर को हिस्ट्री हॉल में रखा तो हम उनके अन्तिम दर्शन करने गये। उनके शरीर के चारों तरफ़ चक्कर लगा रहे थे तब भी। मुझे अच्छे अनुभव हो रहे थे। कहते हैं ना, सन्त-महात्मा, योगी-ऋषि के शरीर छोड़ने के बाद भी उनके शक्तिशाली वायब्रेशन्स उनके पार्थिव । शरीर के आस-पास रहते हैं। मैंने उस पूरी रात वहॉं बैठकर योग कि मुझे बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव हुए। उन्होंने शरीर छोड़ने से पहले पर नगर की सब माताओं और बहनों के लिए चिट्ठी भी लिखकर रखी थी।

बाबा कभी अनन्य बच्चों की बात टाल नहीं सकते – जब उनके शरीर को अन्तिम संस्कार के लिए ले जाना था, उस समय। आबू में बहुत तेज धूप थी। अन्तिम यात्रा निकलने से पहले हल्की-सी। बूंदाबारी हुई और मौसम ठंडा हुआ। बाद में जब भाई साहब का सन्देश । आया, उससे पता पड़ा कि भाई साहब ने बाबा से कहा, बाबा, अन्तिम संस्कार में इतने सारे भाई-बहनें आये हैं, इतनी तेज धूप है, थोड़ी बूंदीबारी। होनी चाहिए। बाबा भी ऐसे अनन्य बच्चों की बात टाल नहीं सकते हैं॥ बाबा ने हल्की-सी वर्षा वर्षायी। – आज भी हमें कोई भी समस्या आती है तो भाई साहब का वो हँसता हुआ चेहरा सामने आता है। उनका सदैव यही कहना होता था कि बाबा को अपने साथ रखकर चलो तो सब समस्यायें भाग जायेंगी। भाई साहब का यह कहना मैं हमेशा याद रखती हैं और बाबा को बार-बार शुक्रिया कहती हूँ कि बाबा, हमें ऐसी महान आत्मा से पालना और मार्गदर्शन पान का मौका मिला इसके लिए आपको और जगदीश भाई को बहुत-बहु…धन्यवाद।

(प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय)