आंतरिक बल (भाग – 1)-मन एक रेडीयो स्टेशन है

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इस रिसाव से दिल में कुछ-कुछ होने लगता है, भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती। उत्साह की तीव्र भावना जागृत हो जाती है। यही कारण है कि जब बच्चे पर मुसीबत आती है तो मातायें शेर और चीते जैसे जानवरों से भी भिड़ जाती हैं। आजादी के समय देशप्रेम के कारण, क्रांतिकारी खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर झूल गये। श्री गुरु अर्जुन देव को मुगलों ने गर्म लोहे पर बैठा दिया, उसके सिर पर गर्म रेत डाली, फिर भी उनमें डर भय नहीं था, यह ईश्वरीय प्रेम से उत्पन्न बल था। वह कहते रहे तेरा भाना मीठा लागे। अगर हमारे मन में प्रेम हो तो हमें बीमारी का, बुरी आदतों का, बुरे व्यक्तियों का भय नहीं लगेगा। प्रेम एक फूल की तरह है। अगर आपके हाथ में कोई फूल है तो सावधानी से चलना चाहिये। जब हम मन में प्रेम के विचार रखते हैं तो एक अद्भुत खुशबू निकलती है जो हमारे आसपास रहने वाले लोग समझ जाते हैं। एक माता बच्चों पर नजर से समझ जाती है कि उसके बच्चे किसी के प्रेम में पड़ चुके हैं। आपके भीतर मौजूद भावों की मधुरता के चलते आपका जीवन सुंदर हो जाता है। प्रेम एक अजीब मिठास है। एक अजीब सौंदर्य है, एक अजीब सी शीतलता है। प्रेम से भरे मन में तरंग उठने लगती है। प्रेम की पूरी की पूरी जो मिठास है, जो मधुरता है, वो इसी बात की है कि प्रेम हमें कुछ क्षणों के लिये शून्य कर देता है।

फूल जब खिलता है तो वह सहज ही अपनी सुगंध फैला देता है। पार्क में आने वालों को अनुभव होता है। ऐसे ही मन में जब स्नेह पैदा होता है तो खुशबू सबको अनुभव होने लगती है जो प्रेम से भरपूर है उसमें परमात्मा की शक्ति काम करती है। प्रेम की शक्ति परिवर्तन लाती है। सोचने का तरीका बदल जाता है, महसूस करने का तरीका बदल जाता है, आपकी बीमारियां ठीक हो जाती हैं, दुश्मनी और नफरत निकल जाती है, अदम्य साहस आ जाता है। स्नेह सबसे शक्तिशाली तरंग है क्योंकि प्यार में बंधा बच्चों की रक्षा के लिये भगवान भी भागा चला आता है। जिसके दिल में, स्वभाव में, व्यवहार में प्रेम भावना है तो समझना चाहिये कि वह बाबा (भगवान) को याद करते हैं, सिर्फ कहते नहीं। जो याद नहीं करता उनमें अहंकार व क्रोध प्रकट होता रहेगा। प्रेम वह केन्द्र बिंदु है जिसके इर्द-गिर्द अनेकों सदगुण विद्यमान रहते हैं। फूल खिलता है तो भीर, तितली, मधुमक्खी घूमती हुई दिखाई देती हैं। जिसके दिल में प्रेम है उसमें दया, सेवा भाव, क्षमा भाव, अपनापन स्पष्ट दिखेगा। स्नेही आत्मा को अपार सहानुभूति मिलती है। प्रेम किसी व्यक्ति विशेष तक सीमित न रखकर पूरे विश्व के प्रति यदि भावना पैदा हो जाये तो वह संत, ऋषि व देवात्मा कहलाती है। जिसमें ऐसी महानता है वह इस धरती पर देवता है। स्नेही का पारिवारिक जीवन स्वर्ग जैसा माना जायेगा। स्नेही स्वभाव का व्यक्ति हर वातावरण में मिलनसार रहता है। अगर आप रूखे हैं, नीरस है, शुष्क है, कठोर हैं, निर्दयी हैं, शोक, संताप, क्लश, द्वष, दुर्भाव से पीड़ित हैं, तो समझो आपके दिल में प्यार नहीं है। जिसके दिल में प्यार की भावनायें उमड़ती है उतना ही वह परमात्मा के नजदीक खिंचता चला जाता है। मन की एकाग्रता स्नेह भावना पर ही निर्भर करती है। मन स्नेह का गुलाम है। जिन व्यक्तियों या वस्तुओं से प्रेम होता है हमारा मन उन्हीं में लगा रहता है। छोटे बड़े का भाव प्रेम में बाधक है।

(प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय)