आंतरिक बल (भाग – १)

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संकल्प शुद्ध और सकारात्मक हैं तो बोल और कर्म भी शुद्ध और सकारात्मक होगा। अगर संकल्प चोरी के हैं, चरित्रहीनता, समाज विरोधी, कानून विरोधी के हैं तो रास्ता जेल में खुलेगा। अगर मन में ईर्ष्या, दबंगई, पीठ पीछे निंदा, सभी पर हकूमत, दूसरों को दबाने, काम करना नहीं सिर्फ श्रेय लेने का है, किसी को आगे न आने देने के हो तो यह रास्ता मानसिक अशांति, पारिवारिक अशांति, संस्था में अशांति, देश में अशांति ही लायेगा चाहे आप भौतिक रुप से सम्पन्न दिखेंगे। आप अपने आसपास चापलूस लोगों से घिर जायेंगे। आपकी समझ काम नहीं करेगी। आपको अच्छे लोग दुश्मन दिखेंगे। हमारी जो भावना होती है उस अनुसार फल मिलता है। इसलिये अपनी भावना को श्रेष्ट बनाओ। आपसे चाहे छोटे हैं चाहे बड़े हैं दोनों की तरफ कल्याण की भावना रखो। बड़े भी गलतियां करते हैं, उनके भी आसुरी संस्कार हैं। चाहे कितना महान हो उसे भी कल्याण भावना की जरूरत होती है क्योंकि वह दूसरों का कल्याण करते-करते खुद अन्दर से खाली हो जाते हैं, उन्हें लोग मन से प्यार नहीं करते, मजबूरी से प्यार और ऊपर-ऊपर का प्यार करते हैं।

छोटे-छोटे कदमों से आप अपना रास्ता विकास की ओर खोल सकते हैं। किसी को मिलने का समय दिया है तो उसकी पालना करें। कोई निर्णय लिया है तो उसे पूरा करें। किस भावना से हॉं या ना या साथ दे रहे हैं। अपनी भावना शुद्ध हो, धोखा देने की न हो, नुकसान करने की न हो, चाहे वह विरोधी भी हो। याद रखो विचार के पीछे भावना क्या है उस अनुसार मन में शांति या अशांति महसूस होगी। जब हम किसी चीज से विदा लेते हैं तो मन में दुख की भावना होती है। सुबह नींद से विदा लेते हैं तो आपको लगता है काश थोड़ा और सोने को मिलता। टीवी पर पसंदीदा कार्यक्रम खत्म होने पर दुख होता है। स्वादिष्ट खाना मिलना बंद हो जाये तो आप दुखी हो जाते हैं। ऐसे दुख की दुविधा है। ऐसी जीवन में कई दुविधायें होती हैं। सिर के बाल झड़ रहे हो तो दुख होता है। उठने, बैठने, भागने में बुढ़ापे में जो दिक्कतें आती है इससे दुख होता है। लड़की की शादी होने पर विदाई के समय परिवार के सभी सदस्य रोते हैं। ए.सी. कमरे से बाहर आते हैं तो थोड़ी देर असुविधा होती है। दिन में ऐसी कई सुखद बातें दिखाई देगी जिनसे मन का लगाव होता है उन्हीं के कारण झगड़ा होता है। जिस चीज से लगाव होता है वह सुखद महसूस होती हैं। यदि हमें मनपसंद चीज नहीं मिलती है तो मन में उस चीज को पाने के विचार चलते हैं। परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे से उम्मीदें होती हैं जब वह पूरी नहीं होती तो दुख होता है। अचानक बिजली चली जाये तो दख होता है, मन उसे कहीं-न-कहीं स्थायी बनाने का सोच रहा था। किसी चीज को जीवन भर स्थायी बनाने की इच्छा ही कुत्ते की पूँछ है। पूँछ सीधी हो न हो मुझे सीधा जरूर होना है। इंसान इन छोटे-छोटे सखों को छोड़ना नहीं चाहता। जितना-जितना ध्यान को बढ़ायेंगे उतना ही यह सुख परेशान नहीं करेंगे।

(प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय)