इस शब्द में गुरु अर्जनदेव जी महाराज हमें समझा रहे हैं कि हम अपने आपको दुनिया से हटाकर अंतर्मुख करें। खुशियों के ख़ज़ाने हमारे अंतर में हैं। जब हम अंतर्मुख होकर अपना ध्यान शिव-नेत्र पर एकाग्र करते हैं, तो हमारी आत्मा की लम्बी अँधेरी रात समाप्त हो जाती है। जब हम अपना सारा ध्यान परमात्मा की ओर करेंगे, तो हम उसका ही रूप बन जायेंगे और जिस purpose से, जिस ध्येय की प्राप्ति के लिए हम इस दुनिया में आये हैं, वह पूरा हो जाएगा।
हमें होली खेलने के लिए होली के दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए। हमें अंतर में अपने प्रियतम के साथ होली खेलनी है। बाहर की होली तो दुनिया के लोग खेलते हैं। जिन्होंने प्रभु को पाना है, उन्हें होली अंतर में अपने सत्गुरु के साथ खेलनी है और इस होली को खेलने के लिए हमें किसी विशेष दिन का इंतजार नहीं करना है। हम रोज़ होली खेल सकते हैं, पल-पल होली खेल सकते हैं। हमें केवल अंतर्मुख होना है। जब हम अपने प्रियतम से होली खेलेंगे, तो वे खुद-ब-खुद हमें प्रभु के दर्शन करवॉं देंगे।